मुझे एक लड़की दिख रही थी। पर मैने उसकी तरफ नही देखा।
वह बहुत देर से मुझे देख रही थी थोड़ी दूर से,वहा बहुत से लोग थे पर पता नहीं क्यों उसकी नज़रें बस मेरे पर अटकी हुई थी।
इस शहर की खासियत यहीं हैं कि यहाँ किसी को किसी की खबर नहीं रहती, भीड़ से भरे इस शहर का अकेलेपन से गहरा लगाव हैं।
हाँ,अकेलेपन का हर बार ये मतलब निकलना ज़रूरी नहीं होता कि कोई परेशान या दुःखी होता हैं तभी कही अकेले जा के बैठता हैं,बल्कि कई बार हर एक के जीवन मे ऐसे पलों का आना मुनासिब हैं जब उन्हें खुद के साथ वक़्त बिताना अच्छा लगता हैं, खुद से सवाल जवाब करते हुए खुद से मिलना अच्छा लगता हैं,खुद के लिए उदास होना,खुद के लिए मुस्कराना अच्छा लगता हैं।
मौसम इतना प्यारा था कि मैं भी उन लहरों के करीब जाने से खुद को रोक नहीं पायी।
वो मेरे ठीक बगल में आ के बैठी, मैं पैरों को खुद में समेटे एकटक समंदर की लहरों को देख रही थी ऐसा लग रहा था वो भी मेरी तरह लहरों से बातें करती होगी।
मौसम बदल रहा था बादल बरसने को आतुर हो रहे थे काले हुए बादलों का बरसना बहुत ज़रूरी होता हैं वरना कब वो तूफान का रूप ले ले समझ नहीं आता।
मन के भीतर का भी मौसम कुछ ऐसा ही होता हैं अगर समय रहते भारी मन से बौछारें ना छुटे तो तूफां को आने से कोई नहीं रोक सकता।
मेरी फोन की घंटी बार-बार बज रही थी उस कॉल को ना मैं उठा रही थी ना ही काट रही थी बस स्क्रीन को घूर के देखे जा रही थी। लगातार एक ही नम्बर से कॉल आ रहा था उसकी क्यूरोसिटी बढ़ती जा रही थी, उसका मन कर रहा होगा की वह थोड़ा झांक कर देख ले।
उसे समझ नहीं आ रहा था माजरा क्या हैं, मौसम बदल रहा था,बादल भर से गये थे ऐसा लग रहा था कि अब बरस पड़ेंगे।
जब अंदर भी दिल कुछ भर जाता हैं तो आँखों का बरसना लाज़मी होता है।
बारिश की हल्की-हल्की बूंदें गिरने लगी उसने छाता खोला और थोड़ी मेरे करीब खिसक गई तो उसने हैरानी से मेरी तरफ देखा मैं मुस्कराई - हल्की सी खोखली मुस्कान दी मेरीआँखों की कोर भरी हुई थी पर मैं रोई नहीं तब तक जबतक उसने मेरा माथा अपने कंधे पर नहीं टिकाया।
मैं हैरान। न जान न पहचान। इसने मेरा दर्द कैसे देखा।
बारिश कबकी चली गयी थी उसका दाया कंधा पूरा भीगा हुआ था। मेरा भी बाया कंधा भीगा था।
बादल भर जाए तो उनका बरसना ज़रूरी हो जाता है मन के भीतर का मौसम भी कुछ ऐसा ही होता है ना ?
वो करीब 30 साल की लड़की थी मुझसे छोटी थी। उसने मेरे गालों को सहला के सर पे हाथ फेर फिर वहा से चली गई।
हमदोनों के बीच कोई बात नहीं हुई.. ना उसने कुछ पूछा ना मैंने कुछ बताया बस तसल्ली इस बात से हुई कि अब मुझे कुछ सुकून सा लग रहा था। पता नही कयनी देर मैन अपना सर उसके कांधे पर रखा। मैंने आंखें बंध कर ली थी और दोनो बारिशें खूब बरसी।
मैंने पहले भी सुना था कि हर इंसान का अपने हिस्से का एक अपना सफ़र होता है जिससे उसे खुद ही लड़ना होता है और पार करना होता हैं।
हर परेशानी की वजह जानना ज़रूरी नहीं होता,कई बार बिना कुछ कहे साथ चल देना या कंधे पे हाथ रख देना भर ही काफी होता हैं।
बहुत भरा हुआ है ये शहर
अकेलेपन की भीड़ से।
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